अब UP की 40 सरकारी ITI भी प्राइवेट हाथों में, फीस में लगभग 54% की बढ़ोत्तरी
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लखनऊ, नेशनल जनमत ब्यूरो
संघ प्रायोजित एजेंडे पर आगे बढ़ती मोदी सरकार से सीख लेते हुए योगी सरकार ने भी सरकारी संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की शुरूआत कर दी है। उत्तर प्रदेश से खबर आ रही है कि प्रदेश सरकार ने 40 आईटीआई संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी कर ली है।
पहले चरण में 16 और दूसरे चरण में 24 संस्थानों के निजीकरण पर सहमति बनाई गई है। इसका मतलब नए सत्र से छात्रों का प्रवेश निजी आईटीआई में होगा। इसके साथ ही दाखिला लेने वाले छात्रों को अब 54 गुना तक ज्यादा फीस का भुगतान करना होगा। यानि आईटीआई की पढ़ाई अब पालीटेक्निक की पढ़ाई से भी ज्यादा महंगी हो जाएगी।
जिस सरकारी आईटीआई की मासिक फीस अभी मात्र 40 रुपए और सालान 480 रुपये है। निजीकरण के बाद फीस 480 रुपए सालाना से बढ़कर 26 हजार रुपए तक हो जाएगी। जबकि पॉलीटेक्निक से साल भर का डिप्लोमा लेने के लिए अभी लगभग 11 हजार रुपए फीस देनी पड़ती है।
सरकार के इस फैसले से गरीब परिवारों में पढ़ने वाले छात्रों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा। दिन-प्रतिदिन सरकार जिस तरह से सरकारी संस्थाओं में हस्तक्षेप कर रही है उससे राज्य के गरीब परिवार और आम जनता का बहुत ज्यादा नुकसान हो रहा है |
इन आईटीआई का होगा निजीकरण–
पहला चरण-
ताखा (इटावा), पैलानी (बांदा), पाली(ललितपुर), पटियाली (कासगंज), राजातालाब (वाराणसी), इकौना (श्रावस्ती), कसया (कुशीनगर), लालगंज(प्रतापगढ़), रानीगंज (प्रतापगढ़),कांठ (मुरादाबाद), लोनी (गाजियाबाद), जयसिंहपुर (सुल्तानपुर), बांसडीह (बलिया), भटहट (गोरखपुर), जंगल कौड़िया(गोरखपुर),सौरांव (प्रयागराज)
दूसरा चरण –
शिवराजपुर (कानपुर) सदर (औरैया),बांगरमऊ (उन्नाव),सौरिख (कन्नौज), थानाभवन-2 (शामली), चीलवनियां (बस्ती), घोसी (मऊ), मिल्कीपुर (अयोध्या), मडियाहूं (जौनपुर), सादाबाद (हाथरस), मार्टिनगंज (आजमगढ़), सिरसागंज (फिरोजाबाद),तिलहर (शाहजहांपुर), इटवा-2 (सिद्धार्थनगर), सहजनवां (गोरखपुर), कोरांव (प्रयागराज), डालीगंज, फैजुल्लागंज (लखनऊ), बांकेगंज (लखीमपुर खीरी), शाहाबाद (हरदोई), किठौर (मेरठ), अफजलगढ़ (बिजनौर), सरौलीकदीम (सहारनपुर), तिलहर (शाहजहांपुर) ,तिलहर, रिछा (बरेली )
राजस्थान में वर्ष 2006 में प्रदेश के सात पॉलीटेक्निक संस्थानों को निजी सेक्टर को सौंपा गया था। जो पूरी तरह सफल नहीं बना और धीरे-धीरे संस्थानों में विवाद शुरू हुआ और मामला कोर्ट तक पहुंच गया।
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