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जयंती विशेष: आखिर हॉकी के जादूगर ‘मेजर ध्यानचंद’ को भारत रत्न क्यों नहीं ?

नई दिल्ली। नीरज भाई पटेल

देश 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाता है. यह दिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. इस दिन देश के राष्ट्रपति, राजीव गांधी खेल रत्न, अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार जैसे अवार्ड नामित लोगों को देते हैं.

मेजर ध्यान चंद यानि दद्दा की बेटी राजकुमारी कुशवाहा और उनके बेटे ओलंपियन अशोक ध्यानचंद समय समय पर पिता मेजर ध्यान चंद को सरकार द्वारा भारत रत्न न दिए जाने पर नाराजगी जताते रहे हैं . कुछ समय पूर्व देश के जाने माने बाँसुरी वादक और पद्म विभूषण हरिप्रसाद चौरसिया ने सचिन को भारत रत्न दिए जाने पर सवाल खड़ा करते हुए मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की थी.

इसके बाद सरकार की तरफ से कुछ दिखावा शुरू जरूर हुआ लेकिन उस ड्रामे के तीन साल बीतने के बाद भी जनता की भारी मांग होने के बाद भी मेजर ध्यानचंद का नाम हर बार दरकिनार कर दिया जा रहा है। दबी जुबान लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया है कि दद्दा का तथाकथित उच्च जाति का न होना ही उनके भारत रत्न में बाधक है।

ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद के ओबीसी (कुशवाहा) परिवार में हुआ था और उनके पिता सोमेश्वर दत्त सिंह अंग्रेज़ी सेना में थे। सोमेश्वर दत्त सिंह भी अपने जमाने के हॉकी के अच्छे खिलाड़ी थे। पिता की प्रेरणा से ध्यानचंद भी मात्र 16 वर्ष की आयु में अंग्रेज़ी सेना में शामिल हो गए थे। बाद में चलकर वे अंग्रेज़ी सेना की ओर से हॉकी खेलने लगे और उन्होंने अपनी खेल-कुशलता के बल पर भारत की राष्ट्रीय हॉकी टीम में अपनी जगह बनाई।

मेजर ध्यानचंद की अगुवाई में भारतीय हॉकी टीम ने तीन ओलिम्पिक स्वर्ण पदक- क्रमशः 1928, 1932 और 1936 में जीते। सन् 1926 से 1948 तक के अपने खेल कैरियर में उन्होंने एक हज़ार से ज्यादा गोल किए, जिनमें एक ही ओलिम्पिक मैच में चार गोल शामिल हैं। गेंद पर उनका गज़ब का नियत्रण था उसे जैसे चाहते घूमा देते थे। कहते हैं कि वे गेंद को अपनी हॉकी स्टिक से चिपका लेते थे और जहां चाहते छोड़ देते थे।

क्रिकेट के बादशाह माने जाने वाले ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी डॉन ब्रेडमैन ने एक बार ध्यानचंद का मैच देखा था। ब्रेडमैन को उनके हॉकी खेलने की कला इतनी अधिक पसंद आई थी कि उन्होंने स्टेडियम से बाहर आते ही मीडिया से कहा कि ” क्रिकेट में जिस तरह से रन बनते हैं ठीक उसी तरह से ध्यानचंद गोल करते हैं।” 1936 ई के बर्लिन ओलिम्पिक में उनके खेल कौशल को देखकर हिटलर बहुत अधिक प्रभावित हुआ था और उन्हें जर्मन नागरिकता सहित कई अन्य सुविधाओं का प्रस्ताव दिया था ताकि ध्यानचंद जर्मनी की ओर से हॉकी खेल सकें।

ध्यानचंद अपने देश से बहुत प्यार करते थे।देश के लिए खेलते रहने की अटूट भावना के कारण उन्होंने हिटलर के तमाम प्रस्तावों को ठुकरा दिया। उस समय उनकी जगह पर यदि कोई दूसरा खिलाड़ी होता तो शायद ही हिटलर के प्रस्तावों को अस्वीकार करने का साहस जुटा पाता।

1956 में ध्यानचंद 51 वर्ष की आयु में मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए। उसी वर्ष उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से नवाज़ा गया। भारत में खेलों के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण ‘लाइफ़ टाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार  का नाम ‘ध्यानचंद पुरस्कार’ है जिसकी शुरुआत 2002 में हुई थी।

इसी वर्ष उनके सम्मान में दिल्ली स्थित नेशनल स्टेडियम का नाम मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम रखा गया। भारतीय जिमखाना क्लब, लंदन के एस्ट्रो-टर्फ हॉकी पिच का नाम भी ध्यानचंद के नाम पर ही रखा गया है।

खेल मंत्री ने पीएम को लिखा था पत्र-

2017 में “केंद्रीय खेल मंत्री विजय गोयल ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर भारतीय हॉकी के दिग्गज खिलाड़ी रहे मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की थी। खेल मंत्री गोयल ने कहा था कि ध्यान चंद को भारत रत्न दिए जाने से न सिर्फ भारतीय हॉकी बल्कि अन्य खेलों को भी काफी बढ़ावा मिलेगा।

महान खिलाड़ी को यह सम्मान दिया जाना उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। हालांकि तक्कालीन खेल मंत्री गोयल ने ये जरूर स्पष्ट कर दिया था कि इस मामले में प्रधानमंत्री को ही आखिरी फैसला लेना है।” तो सवाल फिर वही है कि आखिर प्रधानमंत्री ने फैसला क्यों नहीं लिया ?

कांग्रेस के समय में उठी थी मांग तब सचिन को मिला था-

हालांकि 2017 में ये पहला मौका नहीं था जब खेल मंत्रालय ने ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की है. इससे पहले 2013 में यूपीए सरकार के दौरान भी खेल मंत्रालय ने यह मांग की थी. हालांकि उस साल क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को उनके अंतररराष्ट्रीय करियर से संन्यास लेने वाले दिन ही भारत रत्न देने की घोषणा की गई थी.

कई हॉकी खिलाड़ी धरना दे चुके हैं-

गौरतलब है कि ध्यानचंद के पुत्र अशोक कुमार और अन्य अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी वर्षों से हॉकी के हीरो को भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। 2016  में इस मांग को लेकर पूर्व भारतीय कप्तान अशोक कुमार, अजीत पाल सिंह, जफर इकबाल, दिलीप तिर्की के अलावा सौ से अधिक खिलाड़ी धरने पर भी बैठे थे। 2011 में भी 82 सांसदों ने ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग की थी।

हरिप्रसाद चौरसिया ने क्या कहा था-

2017 में जयपुर में संगीत संध्या में बोलते हुए हरिप्रसाद चौरसिया ने कहा था कि खेल से जुड़े एक बच्चे को भारत रत्न देने से इसका महत्व कम हुआ है. भारत रत्न केवल उन लोगों को दिया जाना चाहिए जिन्होंने जीवन भर कला की साधना की हो. और अगर सरकार को खेलों में ही किसी को भारत रत्न देना था तो मेजर ध्यान चंद को दिया जाना चाहिये था।.

झाँसी सांसद उमा भारती ने किया था वादा–

गौरतलब है कि बुंदेलखंड के झांसी निवासी मेजर ध्यान चंद ने सन् 1928, 1932 और 1936 के ओलम्पिक खेलों में भारत को हॉकी का स्वर्ण पदक जिताने में प्रमुख भूमिका अदा की थी. झाँसी में रह रहे उनके पुत्र उमेश कुमार सिंह जो रेलवे से सेवानिवृत्त हैं.

नेशनल जनमत से बातचीत में कहते हैं की सांसद का चुनाव लड़ने के दौरान केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने घोषणा की थी की सरकार बनते ही मेजर ध्यानचंद को भारतरत्न दिलायेंगे. अब तो उनकी सरकार बने 6 साल से भी ज्यादा समय बीत गया लेकिन अभी भी हमारा इंतजार जारी है। कई लोग आए और वायदे किये लेकिन दद्दा कॊ उनका सम्मान अभी तक किसी ने नहीँ दिलाया. अब तो हमारी उम्मीद भी टूटती दिख रही है।



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