Travel between India and Australia likely to increase after migration deal signed in Sydney

Subscribe to our YouTube channel for free here: https://ift.tt/x8K63Gi For more on Modi’s Australia visit: https://sc.mp/lnj9 Indian Prime Minister Nerandra Modi visited Australia and held meetings with his Australian counterpart Anthony Albanese in Sydney on May 24, 2023 to discuss regional security, economic ties and energy. Australia is seeking to diversify its export markets and become less reliant on China, its largest trading partner. The two countries also signed a migration deal to boost travel from India. Support us: https://ift.tt/OIC6wTk Follow us on: Website: https://www.scmp.com Facebook: https://ift.tt/bNVDujp Twitter: https://twitter.com/scmpnews Instagram: https://ift.tt/UrBfMRx Linkedin: https://ift.tt/NucSMJL #scmp #Asia #Australia source https://www.youtube.com/watch?v=UBnK1oKrYAk

सोशल जस्टिस डे: आरक्षण खत्म करके ‘शाहूजी’ के हिस्सेदारी आंदोलन की हत्या कर रही है BJP

नई दिल्ली, नेशनल जनमत ब्यूरो ।

कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज ब्राह्मणवाद, गैरबराबरी, छुआछूत के खिलाफ मुखर होकर लड़ने वाले देश के पहले राजा थे। बाबा साहेब डा० भीमराव अम्बेडकर बड़ौदा नरेश की छात्रवृति पर पढ़ने के लिए विदेश गए लेकिन छात्रवृति बीच में ही ख़त्म हो जाने के कारण उन्हे वापस भारत आना पड़ा।

इसके बाद छत्रपति शाहूजी महाराज ने बाबा साहेब को विदेश में आगे की पढाई जारी रखने के लिए सहयोग किया और उनको आगे बढ़ाने का भरपूर प्रयास किया। देश में आरक्षण के जनक छत्रपति शाहूजी के महाराज के लिए आरक्षण लागू करना इतना आसान नहीं था।

भारतीय मूलनिवासी संगठन के राष्ट्रीय महासचिव ‘सूरज कुमार बौद्ध’ ने आरक्षण दिवस/सामाजिक न्याय दिवस के मौके पर अपना लेख उनको नमन करते हुए लिखा है।

यह लेख इस मौके पर और भी प्रासंगिक हो जाता है जब क्रीमीलेयर के दायरे की सीमा के नाम पर ओबीसी को आरक्षण से बाहर करने की और नीट में आरक्षण का तकनीकि खेल करके ओबीसी के छात्रों को डॉक्टर बनने ससे रोका जा रहा है।

इसे भी पढ़ें-

आरक्षण दिवस: एक झलक

26 जुलाई यानि कि आरक्षण दिवस। आज से 115 साल पहले 26 जुलाई 1902 में कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा पहली बार आधिकारिक शासनादेश के रूप में शुद्रो तथा अति शूद्रों सहित सभी गैर ब्राह्मणों के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण का ऐलान किया था।

ज्योतिबा फुले के ‘आनुपातिक आरक्षण’ से प्रेरणा लेते हुए सामाजिक परिवर्तन के महानायक एवं आरक्षण के जनक छत्रपति शाहू जी महाराज ने कोल्हापुर नरेश रहते हुए 26 जुलाई 1902 को समाज के कमजोर एवं पिछड़े वर्ग को आरक्षण देने का आदेश किया था।

इसी आरक्षण की वजह से वर्णवादी व्यवस्था से शोषित समाज के दबे , कुचले, पिछड़े बहुजन समाज को भागीदारी मिलने का सिलसिला शुरू हो सका।

गौरतलब है कि भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां पर धार्मिक ठेकेदारों के व्यवहार में ही नहीं बल्कि धर्म शास्त्रों में भी यहां की बहुसंख्यक आबादी को उसके मूलभूत अधिकार जैसे की शिक्षा, संपत्ति, शास्त्र, स्वाभिमान, सम्मान आदि से वंचित रखने को जायज माना गया है। बहुजन समाज को छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा पहली बार शिक्षा, संपत्ति तथा आत्म सम्मान का अवसर मिला था।

त्रावणकोर रियासत में बहुसंख्यकों के साथ भर्ती में किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ सरकारी नौकरियों में आरक्षण की जबरदस्त मांग उठी थी। बड़ौदा और मैसूर की रियासतों में आरक्षण 1902 से पहले से ही था लेकिन तब आरक्षण किसी व्यापक दृष्टिकोण तथा शासनादेश के रूप में नहीं था। इसीलिए 26 जुलाई बहुजन समाज के लिए सामाजिक परिवर्तन आंदोलन का एक ऐतिहासिक दिन है।

जब आरक्षण की चिंगारी ज्योतिबा फुले ने जलाई…

ऐसा भी नहीं है कि 1902 से पहले आरक्षण के विषय पर चर्चा विमर्श नहीं हुआ था। सर्वप्रथम सामाजिक क्रांति के अग्रदूत ज्योतिबा फुले ने 1869 में आरक्षण की जरूरत बताई थी। आगे चलकर 1882 में गठित हंटर कमीशन के समक्ष ज्योतिराव फुले ने नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के साथ सरकारी नौकरियों में सभी के लिए आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व की मांग की।

हमें एक बात ध्यान में रखने की जरूरत है कि ज्योतिबा फूले ने आनुपातिक आरक्षण/प्रतिनिधित्व (Proportional Reservation/ Representation) की वकालत की थी। ज्योतिबा फुले का मानना था कि आनुपातिक आरक्षण के मांग अपने आप में सामाजिक न्याय को स्थापित करने की दिशा में बहुत ही क्रांतिकारी कदम है।

यह प्रकृति का नैसर्गिक सिद्धांत है कि हर व्यक्ति को उसकी अनुपातिक हिस्सेदारी मिले। यह न्याय की सबसे सरल तथा सहज अवधारणा भी है। उदाहरण के तौर पर जैसे कि एक मां के अगर तीन बेटे हैं तो नैसर्गिक सिद्धांत यही कहता है कि जमीन तीन हिस्सों में बांटी जानी चाहिए

चूंकि बड़ा बेटा पढ़ा लिखा है, डिप्टी कलेक्टर है और छोटा बेटा अनपढ़ है, मजदूर है,  इसलिए बड़े बेटे की योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे ज्यादा संपत्ति दिया जाना तथा छोटे बेटे के कम योग्यता को ध्यान में रखते हुए उसे कम संपत्ति दिया जाना न्याय कभी नहीं कहा जा सकता है।

अवसर में समानता के बढ़ते कदम…

अवसर में समानता के सिद्धांत को स्वीकारते हुए ब्रिटिश हुकूमत ने 1908 में भारत की अनेक जातियों को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्णय लिया। आगे चलकर आरक्षण को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करते हुए भारत सरकार अधिनियम-1909 में विधिवत कानूनी जामा बनाया गया।

क्रियान्वयन में सुधार करते हुए भारत सरकार अधिनियम- 1919 में भी आरक्षण का प्रावधान किया गया। गोलमेज सम्मेलन में बाबासाहेब आंबेडकर ने अछूतों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की थी लेकिन गांधीजी ने बाबासाहेब आंबेडकर की मांग का विरोध करते हुए यह ऐलान किया कि वह अछूतों को पृथक निर्वाचक मंडल नहीं देने देंगे।

अंततः गांधी द्वारा आमरण अनशन का ऐलान किए जाने पर बाबासाहेब आंबेडकर को पूना पैक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। पूना पैक्ट में राजनीतिक आरक्षण का प्रावधान किया गया। हक और अधिकारों के इस कड़ी में भारत सरकार अधिनियम-1935 में दिए गए आरक्षण तथा कैबिनेट मिशन-1946 की अनुपातिक आरक्षण संबंधित सिफारिश भी उल्लेखनीय है।

अंततः बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपने संविधान में स्पष्ट रूप से अनुसूचित जाति/जनजाति, सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लिए आनुपातिक आरक्षण का प्रावधान किया।

वर्तमान ओबीसी आरक्षण वीपी मंडल की देन- 

आजादी के 42 साल बाद तक अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक वर्ग के संवैधानिक आरक्षण को दबाया गया था लेकिन अंततः इस का पर्दाफाश हो ही गया। ज्ञातव्य है कि 1979 में गठित मंडल कमीशन का मुख्य काम सामाजिक तथा शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों का मूल्यांकन करना था। मंडल कमीशन ने 1930-31 की जनसंख्या के आधार पर शोध करके अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) की जनसंख्या 52% माना।

मंडल कमीशन द्वारा प्रस्तुत 1980 की रिपोर्ट में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 49.50% आरक्षण लागू करने की शिफारिश की। उधर मान्यवर कांशीराम साहब द्वारा जनचेतना तथा जनजागृति का आंदोलन धीरे धीरे पूरे देश में छा चुका था। बहुजन समाज आबादी के हिसाब से अपने हक की मांग करने लगा था।

इसके दवाब में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल आयोग लागू करने की आड़ में बहुजनों को 85% से घटाकर 50% आरक्षण में समेट करके रख दिया। इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 50% आरक्षण की मर्यादा को अदालती बाध्यता बना दिया।

तब से लेकर आज तक प्रत्येक मामले में अदालतों का रवैया बदलता रहता है। कई बार तो अदालतों के फैसले आरक्षण के उद्देश्य से मेल ही नहीं खाते हैं।

इसे भी पढ़ें-

आरक्षण दिवस की यह लड़ाई सतत जारी रहेगी…

सरकारों द्वारा जब आरक्षण पर सीधा हमला करना असंभव हो गया तो वह निजीकरण का रास्ता अपनाकर सरकारी नौकरियों को निजी कंपनियों के हवाले सौप रहे हैं। लिहाजा आरक्षण का कोई मतलब नहीं रह जाता है क्योंकि निजी क्षेत्र में आरक्षण का कोई उपबंध नहीं है।

हालांकि संविधान में संशोधन के द्वारा निजी क्षेत्र में आरक्षण की सुविधा दी गई है लेकिन यह राज्यों के विवेक पर निर्भर करता है। बड़े-बड़े पूंजीपतियों तथा कुबेरपतियों के दामन में बैठी हुई राज्य को लोक कल्याण से क्या मतलब है। आज वक्त की मांग है कि हम छत्रपति शाहू जी महाराज से प्रेरणा लेते हुए प्रतिनिधित्व की मांग करें।

छत्रपति शाहूजी महाराज का मानना था कि आरक्षण केवल नौकरी का मामला नहीं है बल्कि आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है। यही वजह है कि छत्रपति शाहूजी महाराज अनुपातिक प्रतिनिधित्व की वकालत किया करते थे।

संवैधानिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए हमें कोल्हापुर नरेश छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा शुरू किए 26 जुलाई के इस आंदोलन को थमने नहीं देना चाहिए

इसे भी पढ़ें:

The post सोशल जस्टिस डे: आरक्षण खत्म करके ‘शाहूजी’ के हिस्सेदारी आंदोलन की हत्या कर रही है BJP appeared first on नेशनल जनमत.



Comments

Popular posts from this blog

राकेश ‘कबीर’ की कविताओं में अन्याय, रूढ़िवाद और पाखंडों का विरोध देखने को मिलता है ! समीक्षा

Hong Kong’s only trash incinerator struggles to cope with vast amounts of Covid medical waste

200-strong senior walking group keeps cars waiting in China